V India News

Web News Channel

अनंत चतुर्दशी आज, जानें महत्व और गणेश विसर्जन का शुभ समय!

आज अनंत चौदस है। अनंत चतुर्दशी व्रत का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है। इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनंत भगवान यानी भगवान विष्णु की पूजा के पश्चात बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है। ये कपास या रेशम से बने होते हैं और इनमें चौदह गांठे होती हैं।

अनंत चतुर्दशी के दिन में श्री गणेश विसर्जन भी किया जाता है इसलिए इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है। भारत के कई राज्यों में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। आइए जानते हैं अनंत चतुर्दशी का पूजा मुहूर्त, गणपति विसर्जन का विसर्जन, महत्व।

अनंत चतुर्दशी तिथि
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि आरम्भ: 28 सितम्बर, 2023 प्रातः 06:12 से
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि समाप्त:28 सितम्बर, 2023 सायं 18:51 तक
कुल अवधि: 12 घंटे 39 मिनट

अनंत चतुर्दशी 2023 पर गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार अनंत चतुर्दशी पर गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 11 मिनट से लेकर 07 बजकर 40 मिनट तक रहेगा,वहीं शाम के समय का गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त 04 बजकर 41 मिनट से रात 09 बजकर 10 मिनट तक रहेगा।

शुभ समय चौघड़िया
शुभ – शुभ- 06:12 से 07:42 तक
चर – अच्छा- 10:42 से 12:11 तक
लाभ – शुभ- 12:11 से 13:30 तक
शुभ – शुभ- 16:41 से 18:11 तक

राहु काल (अशुभ समय): दोपहर 01:30 से 03:20 तक

अनंत चतुर्दशी का महत्व-

पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई थी। अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल,अतल,वितल,सुतल,तलातल,रसातल,पाताल,भू,भुवः,स्वः,जन,तप,सत्य,मह की रचना की थी। इन लोकों का पालन और रक्षा करने हेतु श्री हरि विष्णु अनंत के रूप में स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए कहते हैं जो भी अनंत चतुर्दशी का व्रत रखता है और भगवान विष्णु को प्रसन्न करता है तो वे उन्हें इसका अनंत फल देते हैं। कहते हैं अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है तो उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है।

अनंत चतुर्दशी की कथा-
अनंत चतुर्दशी सम्बन्धित कथा महाभारत काल से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था। इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा। इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए। ऐसे में एक दिन श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पहुंचे। तब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि, हे प्रभु हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का मार्ग दिखाएं। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर की बात सुनकर पांचों पांडवों और द्रौपदी सभी को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखने की सलाह दी। और साथ ही भगवान अनंत की पूजा करने के लिए कहा।

युधिष्ठिर ने अनंत भगवान के बारे में पूछा तो श्री कृष्ण ने बताया कि भगवान अनंत श्री हरि विष्णु के ही रूप हैं। चातुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। इतना ही नहीं अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इसीलिए इनके पूजन से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। श्री कृष्ण की बात सुनकर युधिष्ठिर ने परिवार समेत इस व्रत को धारण किया जिसके शुभ फलस्वरूप उन्हें पुन: हस्तिनापुर का राजपाट मिला।